दिल्ली की एक अदालत ने आपराधिक मानहानि मामले में पत्रकार प्रिया रमानी को बरी कर दिया। यौन उत्पीडन के आरोपों पर रमानी के खिलाफ एमजे अकबर ने मुकदमा दायर किया था। यह वही एमजे अकबर है जिन पर #MeToo कैम्पेन में यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज हुआ था। कोर्ट ने पत्रकार प्रिया रमानी को आपराधिक मानहानि मामले में दोषी मानने से इनकार करते हुए उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। प्रिया रमानी ने साल 2018 में #MeToo कैम्पेन के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर पर यौन शोषण का गंभीर आरोप लगाया था। जिसे लेकर अकबर ने प्रिया रमानी के खिलाफ 15 अक्टूबर 2018 को यह शिकायत दायर की थी।
अदालत ने 10 फरवरी को फैसला 17 फरवरी के लिए यह कहते हुए टाल दिया था कि चूंकि दोनों ही पक्षों ने विलंब से अपनी लिखित दलील सौंपी है, इसलिए फैसला पूरी तरह सेनहीं लिखा जा सका है।
अब इस मामले में कल कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए पत्रकार प्रिया रमानी को बरी करते हुए 6 अहम बाते कही-
- हमारे समाज को यह समझने में समय लगता है कि कभी-कभी पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात के कारण वर्षों तक नहीं बोल पाता। महिला को यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए दंडित नहीं किया जा सकता।
- महिला अक्सरसमाजिक दबाव में शिकायत नहीं कर पाती. समाज को अपने पीड़ितों पर यौन शोषण और उत्पीड़न के प्रभाव को समझना चाहिए।
- सोशल स्टेट्स का व्यक्ति भी यौन उत्पीड़न कर सकता है।
- यौन शोषण गरिमा और आत्मविश्वास से दूर ले जाता है. प्रतिष्ठा का अधिकार को गरिमा के अधिकार की कीमत पर संरक्षित नहीं किया जा सकता।
- एक महिला को दशकों बाद भी अपनी शिकायत किसी भी मंच पर रखने का अधिकार है. मानहानि कहकर किसी महिला को शिकायत करने से रोका नहीं जा सकता है और सज़ा नहीं दी जा सकती.
- कोर्ट नेमहाभारत और रामायण का भी ज़िक्र करते हुए कहा कि लक्ष्मण से जब सीता का वर्णन करने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा कि मां सीता के पैरों के अलावा उनका ध्यान कहीं और नहीं था।