24 फरवरी को उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में लव जिहाद पर कानून विधानसभा कानून पास हो गया होना भी था क्योकि मेजौरिटी में सरकार हैं और विपक्ष का कोई ज़ोर इस पर चलना नही था कांग्रेस और बीएसपी ने एक जैसा मत रखा उन्होने कहा की देश में पहले से ही जबरन धर्मपरिवर्तन पर कानून मौजूद है इसलिए अलग से इस पर कानून बनाने की ज़रूरत नही हैं, समाजवादी सदन नेता राम गोविंद ने कहा कि देश में अलग अलग जातियो के लोग मौजूद हैं पत्नी पहले अपने पिता के नाम को अपने नाम के साथ जोड़्ती है फिर शादी बाद अपने पति का लेकिन कई बार ये भी देखा गया है कि नाम बदलने पर इतना ज़ोर नही दिया जाता और कई बार तो ऐसा भी होता है कि लड़का दूसरी बिरादरी का होता है और लड़की दूसरी तो इसका मतलब ये नही कि कोई किसी का जबरन धर्म परिवर्तन करवा रहा हो.
बहुत पुराना हैं धर्म परिवर्तन का इतिहास
वास्को डा गामा जब 1498 में भारत में कालीकट के किनारे पर पहुंचे थे, तब उन्होंने पाया था कि केरल के क्षेत्र में करीब 2 लाख ईसाई हुआ करते थे. बाद में ब्रिटिश राज कायम हुआ तो शुरूआत में ब्रिटिश सरकार ने मिशनरियों को कोई तवज्जो नहीं दी. लेकिन ब्रिटिश संसद में दबाव के बाद 1837 में मिशनरियों को इजाज़त देनी पड़ी.
वास्को डा गामा जब 1498 में भारत में कालीकट के किनारे पर पहुंचे थे, तब उन्होंने पाया था कि केरल के क्षेत्र में करीब 2 लाख ईसाई हुआ करते थे. बाद में ब्रिटिश राज कायम हुआ तो शुरूआत में ब्रिटिश सरकार ने मिशनरियों को कोई तवज्जो नहीं दी. लेकिन ब्रिटिश संसद में दबाव के बाद 1837 में मिशनरियों को इजाज़त देनी पड़ी.
आज़ादी के बाद संसद के माध्यम से कानून बनाने की कवायदें होती रहीं, लेकिन ऐसा हो न सका. 1954 में ऐसा एक बिल पेश किया गया था, जो लागू होता तो मिशनरियों को धर्म परिवर्तन का रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होता, लेकिन यह बिल पास नहीं हुआ. इसके बाद, 1960 में हिंदू धर्म की पिछड़ी जातियों के इस्लाम, ईसाईयत, यहूदी और पारसी धर्मों में हो रहे कन्वर्जन को रोकने के लिए एक बिल पेश हुआ था.
साल 1979 में फिर धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी बिल संसद में पेश हुआ था, जो एक से दूसरे धर्म में होने वाले कन्वर्जन पर प्रतिबंध की बात करता था. 1979 में ही 29 मार्च को इस बिल के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसमें करीब 1 लाख लोग सड़कों पर उतर आए थे. यही नहीं, 2015 में एनडीए सरकार ने फिर राष्ट्रीय स्तर पर एंटी कन्वर्जन कानून बनाने की कोशिश की थी, लेकिन सरकार के ही कानून मंत्रालय ने यह कहकर इस विचार को खारिज कर दिया कि यह राज्यों के अधिकार क्षेत्र का मामला है. इनके साथ ही, तमिलनाडु में एक विवादास्पद कानून 2002 में बना था, लेकिन 2004 में उसे खत्म भी कर दिया गया. मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब 2003 में गुजरात में कन्वर्जन के विरुद्ध कानून बना था. हिमाचल में 2006 और उत्तराखंड में 2008 में इस तरह के कानून बने.
जब कांग्रेस सरकारें सत्ता में थीं. मप्र में यह कानून कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में विधानसभा में आया था, लेकिन पास तब हुआ जब गैर कांग्रेसी सरकार बनी. छत्तीसगढ़ ने मप्र के ही कानून को अपनाया. हिमाचल में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के समय यह कानून बना था.
उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश ये दो ऐसे राज्य हैं जो काफी समय से धर्म परिवर्तन पर कानून लाने की बात समय समय पर करते रहे है और अब ये कानून सबसे पहले बने भी इन्ही राज्यो में हैं
चलिए अब आपको बताते है कि नया कानून क्या कहता है
जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर एक से पांच साल की सजा और 15000 रुपये जुर्माना
अनुसूचित जाति, जनजाति या फिर नाबालिग का जबरिया धर्म परिवर्तन कराने पर तीन से दस साल की सजा और 25 हजार रुपये जुमाना
सामूहिक रूप से धर्म परिवर्तन कराने पर 10 साल तक की सजा और 50 हजार रुपये जुर्माना लगेगा.